विद्वानों का मानना है कि ईश्वर को पाने के तीन मार्ग हैं--ज्ञान, कर्म और भक्ति। दरअसल, यह ज्ञान ही है, जिसके माध्यम से हम यह जान पाते हैं कि ईश्वर कौन हैं? ज्ञान का संग्रह हमारे मस्तिष्क में होता है और इसमें कोई दो राय नहीं कि इसे हम ईश्वर से ही प्राप्त करते हैं। मनुष्य का ब्रेन छोटा होता है, तो फिर ऐसी स्थिति में प्रश्न यह उठता है कि उससे वह ईश्वर को कैसे माप पाता है? वास्तव में, मस्तिष्क में मौजूद ज्ञान से ही यह संभव हो पाता है। ज्ञान से मन की भी तृप्ति होती है। श्रीआनंदमूर्ति के अनुसार, जब तक मनुष्य में ज्ञान का अहसास रहे, तब तक उसे ज्ञानार्जन करते रहना चाहिए। सच तो यह है कि एक सीमा के बाद आपके ज्ञान की भूख स्वयं मिट जाती है, क्योंकि तब तक आपका लक्ष्य ईश्वर को पाना हो जाता है। कुछ विद्वान मानते हैं कि कर्म से ही ईश्वर की प्राप्ति होती है, क्योंकि कर्म किए बिना मनुष्य एक क्षण भी जिंदा नहीं रह सकता है! इसलिए हमें कर्म करते रहना चाहिए। लेकिन ध्यान रहे, कर्म अच्छे होने चाहिए। वैसे, गीता में भी भगवान कृष्ण ने हम मनुष्यों को बिना फल की चिंता किए कर्म करते रहने की सलाह दी है। कहने का मतलब यही है कि धार्मिक और आध्यात्मिक जगत में जितनी कीमत ज्ञान की है, उससे कम कर्म की नहीं है। विद्वान कहते हैं कि यदि निर्मल भाव से ईश्वर की भक्ति की जाए, तो उनका मिलना कठिन नहीं है। सच तो यह है कि भक्ति ही एकमात्र रास्ता है, जिस पर बड़े-बड़े ज्ञानी भी चल चुके हैं। हम सभी यह बात मानते हैं कि संपूर्ण सृष्टि का निर्माण ईश्वर के हाथों ही हुआ है।
इसलिए दुनिया के प्रत्येक जीव परमात्मा की ही संतान हैं। यदि आप परमात्मा को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो उनकी संतान, यानी प्रत्येक जीव के प्रति प्रेम-भाव रखें। और इसके लिए आपको न केवल मानव-सेवा और समाज -सेवा करनी चाहिए, बल्कि बेसहारों को सहारा भी देना चाहिए। वैसे, मानव सेवा करते समय आप हमेशा एक बात ध्यान में रखें कि यह सब आप प्रभु को पाने के लिए ही कर रहे हैं। वास्तव में, यही भक्ति है। उसके पीछे और कोई वजह नहीं है। यदि भक्ति भाव जग गया, तो समझिए आपको प्रभु को पाने का मार्ग मिल गया।
आचार्य दिव्यचेतनानन्द
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