उसे भूला तो खो जाऊंगा मैं भी
मेरी हिम्मत को ये डर तोड़ता है
सजाये रख इन्हे पलकों पे अपनी
ये मोती काहे रोकर तोड़ता है
बड़ा बे-दर्द है साहिल के दिल को
सुनामी से समन्दर तोड़ता है
वही रिश्ता है जो जोड़े है सबको
अगर बिगड़े वही घर तोड़ता है
बनाये जो महल ख्वाबों में उसने
उन्हीं महलों को दिनभर तोड़ता है
कोई बच्चा नहीं है 'कम्बरी' अब
कि आईने से पत्थर तोड़ता है
[अंसार कम्बरी]
'जफर मंजिल' 11/116, ग्वालटोली, कानपुर- 208001
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