Tuesday, May 12, 2009

कोई बच्चा नहीं है

उसे भूला तो खो जाऊंगा मैं भी

मेरी हिम्मत को ये डर तोड़ता है

सजाये रख इन्हे पलकों पे अपनी

ये मोती काहे रोकर तोड़ता है

बड़ा बे-दर्द है साहिल के दिल को

सुनामी से समन्दर तोड़ता है

वही रिश्ता है जो जोड़े है सबको

अगर बिगड़े वही घर तोड़ता है

बनाये जो महल ख्वाबों में उसने

उन्हीं महलों को दिनभर तोड़ता है

कोई बच्चा नहीं है 'कम्बरी' अब

कि आईने से पत्थर तोड़ता है

[अंसार कम्बरी]

'जफर मंजिल' 11/116, ग्वालटोली, कानपुर- 208001




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