अगर आपके रुपये चोरी हो गए है, या खर्च हो गए है, तो उन्हें फिर से अर्जित किया जा सकता है। आपका स्वास्थ्य खराब हो गया है, तो योग्य चिकित्सक के उपचार से आप फिर से स्वस्थ हो सकते हैं। लेकिन जो समय बीत गया, उसे दोबारा वापस पाने का कोई उपाय नहीं है। आप देवी-देवताओं से प्रार्थना भी करें, तो भी गुजरे समय को वापस नहीं ला सकते।
क्या हम पशु हैं?
समय नदी की बहती जलधारा के समान है, एक बार बह गया, तो बह गया। जो लोग समय यूं ही बीत जाने की चिंता नहीं करते हैं, वे पशु के समान हैं। सच तो यह है कि पशुओं के पास विवेक, ज्ञान और बुद्धि नहीं है, इसलिए उन्हें समय की चिंता नहीं होती है। यदि कोई व्यक्ति समय के महलव को नहीं समझ पाता है, तो वह पशु के समान है। इसलिए यदि आप पशु नहीं कहलाना चाहते हैं, तो समय की कीमत को समझें।
समय ही ईश्वर है
समय सीमित है। हर वस्तु में हम वृद्धि कर सकते हैं। धन अर्जित कर हम करोड़पति अथवा अरबपति बन सकते हैं। थोड़ा प्रयास करें, तो विद्वान और ज्ञानवान भी बना जा सकता है। यहां तक कि झोपड़ी से महल में भी पहुंचा जा सकता है, लेकिन अपने जीवन के लिए निर्धारित समय में एक पल की भी वृद्धि कर पाना संभव नहीं है। हमें निर्धारित समय में अपना लक्ष्य हासिल करना होता है। यदि हमें लेखक, चित्रकार, इंजीनियर, डॉक्टर आदि बनना है, तो तय समय में हमें लगातार प्रयास करना होगा। तभी हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकते हैं। समय के महलव के बारे में गीता में भी बताया गया है। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, 'मैं ही समय हूं' अहमेवाक्षय: कालो यदि हम समय के महलव को नहीं समझ पाते हैं, तो ईश्वर के महलव को कैसे समझ पाएंगे?
समय का प्रबंधन
ज्यादातर लोग समय यूं ही काटने में विश्वास करते हैं। ऐसे लोग भूल जाते हैं कि वे समय को नहीं काट रहे हैं, बल्कि समय उन्हें काट रहा है। निश्चित ही ऐसे लोगों का जीवन में अपना कोई उद्देश्य नहीं होता है। हमें यह निश्चित कर लेना चाहिए कि हमें कब क्या करना है? कब अपनी उद्देश्य-प्राप्ति के लिए आवश्यक श्रम करना है? इसके अलावा, हमें न केवल आराम का समय, बल्कि मौन रहने और बोलने का समय भी निश्चित कर लेना चाहिए। इसे हम अपने मस्तिष्क को सुव्यवस्थित कर सकते हैं। महान दार्शनिक आइजक पिटमैन ने भी मस्तिष्क को सुव्यवस्थित करने की बात कही है।
'महान' और 'सामान्य' में अंतर
जीवन में जो व्यक्ति सफल हुए हैं, उनकी सफलता का सबसे बड़ा मंत्र है कि उन्होंने तय समय के भीतर अपने सभी काम को निपटाया है। एक चिंतक ने भी कहा है, 'कुछ लोग महान बने और कुछ लोग सामान्य रह गए, उन दोनों में अंतर यही है कि किसने किस रूप में अपने समय का उपयोग किया।' जिन लोगों की ईश्वर में आस्था है, वे सोचते हैं कि ईश्वर ने कुछ कार्याें को पूरा करने के लिए ही उन्हें पृथ्वी पर भेजा है और समय के भीतर ही उन कायरें को पूरा करना उनका धर्म है। बाइबल के अनुसार, 'हमें समय रहते सभी कार्यो को पूरा कर लेना चाहिए।' (जॉन-9/4)
यदि हम अपने समय का प्रबंधन सही तरीके से करना जान लेते हैं, तो हमारे पास इतना समय ही नहीं बचता कि हम उस विषय पर व्यर्थ की चिंता करें। इससे हमारा मन भी सुव्यवस्थित हो जाता है। सुव्यवस्थित मन में नकारात्मक विचार भी पैदा नहीं हो सकते हैं।
यदि हमारा मन चंचल है, तो उसे स्थिर करके तय किए गए लक्ष्य की प्राप्ति में लगाया जा सकता है। मन में लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अच्छे विचार आएं, इसके लिए यह आवश्यक है कि मन-रूपी उद्यान से कुविचारों के झाड़-झंखाड़ को उखाड़ कर उसे निर्मल, उज्जवल और सुंदर बनाया जाए। इस संदर्भ में हम रवीन्द्रनाथ टैगोर की इन पंक्तियों को गुनगुना सकते हैं।
मानस मेरा विकसित करो।
हे मानस के स्वामी।
निर्मल करो उज्ज्वल करो।
सुंदर करो हे।
जागृत करो उद्यत करो।
निर्भय करो हे (गीतांजलि)
भगवतीशरण मिश्र
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